भाषा और व्याकरण का चोली दामन का संबंध है। व्याकरण ही भाषा को सजाती- संवारती है। भाषा शिक्षण के माध्यम से भाषा को समझना, बोलना लिखना पढ़ना, भाषा के मानक उच्चारण, वर्तनी प्रयोग, शब्द-रचना, वाक्यरचना आदि की जानकारी तथा अपने भावों को शुद्ध और सहज रूप से व्यक्त कर सकते हैं। भाषा का अधिक प्रयोग उसके मौखिक रूप में होता है, परंतु भाषा का सुसंस्कृत रूप उसके लिखित रूप में ही प्राप्त होता है। इसके लिए व्याकरण का ज्ञान होना आवश्यक है।
हिंदी हमारी राजभाषा है। प्रारंभ से ही इसे व्याकरण की परिसीमाओं में मर्यादित रखते हुए विकसित करने के प्रयास होते रहे हैं।
आशा है कि यह पुस्तक व्याकरण, रचना एवं व्यावहारिक भाषा का समुचित ज्ञान प्रदान करने में उपयोगी सिद्ध होगी।